Thursday, July 11, 2019

लेखक की कलम से

लोग असुविधाओं में कैसे जी लेते हैं. उत्तर है – कोई चारा जो नहीं होता. जब हमारे पास कुछ भी नहीं होता है, तब जितना है बस उसी में हमें गुज़ारा करना पड़ता है. कुछ लोग जो सुख-सुविधाओं में पले-बढ़े हैं, उनके नखरे कुछ ज़्यादा ही होते हैं. हमें अच्छे ढंग से जीने की आदत होनी चाहिए, इसमें कोई दो राय नहीं है. लेकिन परिस्थिति आने पर उसमें ढलना भी आना चाहिए. घंटे भर बाथ-टब में नहाने वालों को पानी की कीमत शायद ही पता हो. लेकिन पानी की एक–एक बूंद की कीमत उन्हें तब पता चलेगी जब गला भिगोने के लिए उनके पास कुछ नहीं होगा. आज जो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, जिनके पैर ज़मीन पर नहीं हैं. उन्हें भी बाद में बड़ी तकलीफों का सामना करना पड़ सकता है. एक अच्छी सोच के मुताबिक, एक इन्सान होने के नाते अपने आलावा भी किसी और के बारे में सोचना चाहिए. - जय वर्धन आदित्य