Thursday, January 2, 2020

एक छोटी-सी बड़ी भूल (कहानी)

संजय सर झुकाए कंप्यूटर डेस्क पर बैठा था. BPO और नाईट शिफ्ट. सब अपने-अपने कामों में मशगुल थें. संजय बहुत ही हंसमुख है, लेकिन आज वो चुपचाप बैठा था, FM पर गाने आ रहे थें, लेकिन आज वो पहली बार, एक बार भी नहीं गुनगुनाया था.
उसके उदासी का कारण क्या है? हुआ कुछ यूँ, दो महीने पहले की बात है. चचेरे भाई की शादी की रिसेप्शन थी, संजय के बड़े भाई अजयने साथ चलने के लिए कहा. संजय भाई की बात कभी नहीं टालता, लेकिन ना जाने का बहाना बनाने की कोशिश की क्योंकि वो अपने दोस्तों के साथ टूर पर जाना चाहता था. शादी में शामिल होने के बाद कोई मतलब ही नहीं रिसेप्शन में भी जाएँ. उससे अच्छा शादी के नाम पर ली गयी छुट्टी का कहीं और इस्तेमाल करें, मगर भैया भी कहाँ मानने वाले थें, उसे ले ही गए.
वहाँ पर उसकी मुलाकात संजना से होती है. संजना, भाभी की कोई नज़दीकी बहन है. थोड़ी-बहुत बातों से सिलसिला शुरू हुआ और संजय उसे चाहने लगा. उसने कभी भी किसी लड़की में इतनी गंभीरता का पुट नहीं देखा था, और ना ही विचारों की परिपक्वता, सादगी और शिष्टता, संजय के लिए बस इतना काफी था प्यार पनपने के लिए, खुद संजय भी काफी हद तक ऐसा ही था.
संजना अभी पढाई कर रही थी, मोबाइल की इजाज़त घर में नहीं थी. तब सोशल मीडिया पर बातें शुरू हुई, कुछ दिनों तक बातें ठीक चलीं. उसके बाद अजीब सा रूखापन आ गया. संजना ने मैसेज का जवाब देना कम कर दिया और लगभग बंद कर दिया. संजय को बुरा तो लगता, लेकिन वो खुद को समझाता रहता था की उसकी पढाई चल रही है, व्यस्त होगी, घर का डर लगता होगा, लड़की जो है, इसलिए बात नहीं कर पाती होगी. और कभी भी संजना के लिए अपने मन में इज्ज़त कम नहीं होने दिया. यहाँ तक की उसने पापा-मम्मी से भी संजना के बारे में बात की. लेकिन पापा ने इस रिश्ते को आगे बढ़ाने से पहले थोड़ा सब्र रखने के लिए कहा. संजय बड़े भाई से नहीं कह पाया की कहीं कोई खलल ना पड़े.
कुछ दिनों में बात थोड़ी और बदतर हो गयी. अब तो संजय जब ऑनलाइन होता, संजना ऑफलाइन हो जाती. अपने जवाबों का इंतज़ार रहता था उसे, और जब कभी-कभी उसके लम्बे-चौड़े मैसेज का जवाब तो टुक शब्दों में आता था, तब भी वो बहुत ही खुश हो जाया करता था. खुद को समझाने और भ्रमित करने की कोशिश करता था.
एक दिन संजय अपने एक दोस्त गौरवसे मिला. कॉफ़ी शॉप पर दोनों बातें करते-करते गौरव ने अपने रिलेशनशिप के बारे में बताना शुरू किया. एक लड़की के साथ वो पिछले एक साल से इंगेज था, और शादी भी करने वाला था. लेकिन एक महीने पहले ही उस लड़की ने बिना उसे बताये इंगेजमेंट कर ली और दो दिन पहले उसकी शादी हो गयी. कहते-कहते उसकी आँखें भर आईं. संजय ने उसको बहुत समझाया और उसे हिम्मत दी. जीने का दूसरा ज़रिया भी हो सकता है इंसान का, और बहुत सारी बड़ी-बड़ी बातें जो कर सकता था, संजय ने गौरव को बतलाया.
एक सुबह, नाईट शिफ्ट के बाद संजय जब घर जा रहा था. उसे अपने एक भाई का मैसेज मिलता है, जो की वो भी इस बारे में जानता था की संजय, संजना को पसंद करता है. भाई ने मैसेज करके बताया था की संजना के लिए लड़का ढूंढा जा रहा है. संजय कुछ क्षण के लिए सन्न रह गया. अजीब सा एहसास था. चेहरे पर गर्माहट फ़ैल गयी थी और हाथ थोड़े कांपने लगे थें.
कितनी सच्चाई थी संजय की भावनाओं में. ऐसा कैसे हो सकता है? इतनी बड़ी बात संजना ने उसे बताना तक ज़रूरी नहीं समझा. इसका सीधा मतलब ये है की संजना कितना भी महत्व रखती हो संजय के लिए, लेकिन संजना के लिए संजय का होना-न-होना बराबर है.
रात को ऑफिस में कंप्यूटर डेस्क पर सर झुकाए संजय बैठा था. गाने बज रहे थे, लोग आपस में थोड़ी-बहुत बातें भी कर रहे थे. इन थोड़े बहुत कोलाहल में संजय चुपचाप कुछ सोच रहा था. अचानक से आँसू की एक बूंद उसके गाल पर सरक कर आ गयी. कोई देख ना ले, तुरंत रुमाल निकाल कर पोछा. रुमाल को फिर से जेब में रखने लगा की मुँह से सिसक निकल गयी और दोनों आँखों से दो बड़ी-बड़ी बुँदे निकल आई. रुमाल से झट से उसने आँसू पोछे और रुमाल को डेस्क पर ही रख दिया. पता नहीं कब इसकी ज़रूरत पड़े, और कहीं उसके आँसू कोई देख ना ले.
उसे संजना पर तनिक भी गुस्सा नहीं आ रहा था. उसे खुद पर क्षोभ हो रहा था. दुःख इस बात का ज्यादा नहीं की संजना ने उसे अपना नहीं समझा. दुःख इस बात का था, उसने ऐसी उम्मीद लगाई ही क्यूँ? लगातार उपेक्षाओं के बावजूद वो चिपकने की कोशिश करता रहा. उसमें ज़रा सी भी शर्मिन्दगी नहीं बची थी? अपना समझने का अधिकार संजना ने नहीं दिया था, और ना ही ये कहा था की मेरे ख्यालों में खोये रहो. दुःख किस बात का है फिर? वो लड़की है, अपने घर की मर्यादा है और वो उसीको अपनाएगी जिसे वो और उसके माता-पिता चाहेंगे. अपने सच्चे प्यार और लगाव के ढकोसले को, रिश्ते को लेकर गंभीरता को किसने हवा देने को कहा था? उसके एहसास कौरियों के भाव है संजना के लिए. तो अब क्यूँ रो रहा है?
पता नहीं जाने कितनी ही बार रुमाल उठाया और चुपके से आँसू पोछें. इस बार फिर से उसने झट से भीगी आँखों को पोछा और फिर एक घूंट पानी पिया. अचानक से अनवर (अनवर टीम लीडर है और दोस्त भी) ने कंधे पर हाथ रखा और पूछा, “अरे संजू कैसा है यार? चेअर नीचे करके क्यूँ बैठा है?,” संजय जितना हो सकता था ज़बरदस्ती मुस्करा कर उसकी तरफ देखा और बोला, “ठीक हूँ,” “तेरी आँखें इतनी लाल क्यूँ हैं?,” अनवर ने पूछा, संजय को इक पल के लिए लगा अब वो बिखर जायेगा और सारे ऑफिस में उसका तमाशा बन जायेगा. खुद को काबू करते हुए बोला, “आज सो नहीं पाया, इसलिए,” “अपना ख्याल रख और सोया कर, शायरियाँ पोस्ट करना थोड़ा कम कर,” फिर हँसते हुए एक ओर चला गया.
गला रुंधा था, ऐसा महसूस हो रहा था की साँस भी ढंग से नहीं ले पा रहा है. कंठ में जैसे थोड़ा दर्द हो रहा था. सहनशक्ति जवाब दे गयी, संजय लपक कर चेहरे को छुपाते हुए, वाशरूम में चला गया. दरवाज़ा अन्दर से लॉक करके, वाश बेसिन के आगे खड़ा हो गया, आईने में अपनी शक्ल देखि और जैसे भावनाओं का बाँध टूट गया. फफक कर रो पड़ा और जितना हो सकता था अपने आवाज़ को काबू करने की कोशिश करने लगा. गाल आंसुओं से भीग रहे थे, नाक और आँखें सुर्ख हो रही थीं. लेकिन वो अपने दुःख और कुंठा के समंदर को खाली कर देना चाहता था, उसका भारी मन हल्का हो रहा था.
कौन कहता है लड़के रोते नहीं? वो छुप कर रोते हैं और खुद ही खुद में घुलते हैं. कुछ बातों की तड़प इतनी होती है की मौत से ज्यादा तकलीफ देती है. इसलिए तो कई लोग अपने भावानात्मक दुखों से परेशान होने के बजाए मौत का रास्ता चुन लेते हैं. आमतौर पर लड़के अपनी भावनात्मक कमजोरियों और दुखो को हिम्मत की मोटी चादर से ढक कर छुपाने की कोशिश करते हैं.
मन में फिर विचारों का उछाल आया, संजय मन-ही-मन बुदबुदाने लगा, “गलती ना उसकी है और ना ही किसी और की, खुद को परिपक्व समझता है तो इस बात से उबरने की ताकत रख,” किताबी बोल मन में चलने लगें प्रेम त्याग का नाम है, प्यार में कोई शर्त नहीं होती, तुमने शर्त तो नहीं रखी थी की वो भी तुमसे प्यार करे, उसकी ख़ुशी में अपनी ख़ुशी महसूस करो, वगैरह .... वगैरह. दूसरी ओर उसे खुद पर बहुत शर्म आ रही थी, इतनी उपक्षाओं के बाद भी वो उम्मीद लगाये कैसे बैठा था? इसका दो ही मतलब हो सकता है, चाहे वो अव्वल दर्जे का बेशर्म है या फिर मुर्ख.
वाशरूम का दरवाज़ा किसी ने खटखटाया. संजय ने झट से चेहरे पर पानी मारा और जाकर दरवाज़ा खोला. क्या यार! दरवाज़ा क्यूँ बंद कर दिया था?,” सुजीत ने पूछा, “गलती से बंद हो गया होगा,” संजय ने धीरे से कहा, सुजीत ने उसके चेहरे की तरफ देखते हुए कहा, “चेहरा तो पोछ ले, नहा रखा है,” “नहीं! नींद आ रही है,” संजय ने कहा, पानी से भीगे चेहरे से गुज़रती अश्रु धारें पता नहीं चल रही थीं.
आइने के सामने खड़े-खड़े मन में एक विचार कौंधा, “ख़ुदकुशी कर लेता हूँ,” दुसरे ही पल उसे अपने दोस्त का ख्याल आया, उसपर क्या बीती होगी? उसका लगाव शायद उससे ज्यादा यथार्थ और लम्बे वक़्त का था, फिर मन-ही-मन कहने लगा, “अपने परिवार के बारे में सोचो, भाई-बहन और माँ-बाप के बारे में सोचो, इतना फ़िल्मी बनने का कोई फायदा नहीं, याद करो जब कभी अपने पिता से गले मिलते हो तो वो कितना खुश हो जाते हैं. मम्मी का थोड़ा-सा सर क्या दबाया, आशीर्वादों की झड़ी लगा देती है. अपने बहनों को थोड़ा दुलार कर दो तो कितने लाड़ में आ जाती है. भैया की छोटी-छोटी बात मान लेने पर ही वो कितने संतुष्ट रहते हैं और सब जगह तारीफें करते हैं. ये सब नहीं दिखाई देता तुझे? परिवार में छोटी-छोटी बातों में ही इतना प्यार और ख़ुशी छुपी होती है. तुम्हारे एक कतरे प्यार के लिए परिवार तुम्हें प्यार का सागर देता है. तुम बस अपने परिवार को थोड़ा और प्यार करके देखो तुम्हें सारे संसार की खुशिया मिलेंगी, किसी और की ज़रूरत नहीं तुम्हें. अगर इतनी सी बात भी समझ नहीं सकते, तो सच में जीने का कोई फायदा नहीं,” मन ग्लानी से भर गया, लेकिन संभल भी गया. अपना चेहरा अच्छे से धोया और गहरी सांस ली. आँखें अभी भी सुर्ख हो रही थीं.
संजय अपने डेस्क पर गया सिट ऊँची की और काम पर लग गया. अनवर अपने डेस्क से ही चिल्लाया, “संजू! तू सोया नहीं आज, तबियत ठीक नहीं लग रही होगी, थोड़ा सोजा, आराम कर, मैं संभाल लूँगा,” “अभी तक तो सोया ही था, अब जाकर जागा हूँ,” संजू ने जवाब दिया, अनवर थोड़े विस्मय के साथ भौंहे सिकोड़ कर पूछा, “मतलब?,” “मतलब आप नहीं समझोगे,” संजू ने जवाब दिया, अनवर एक क्षण रुका, गहरी साँस ली और मुस्कराते हुए कहा, “समझ गया,” और उसे अंगूठे के इशारे से ऑल द बेस्टका संकेत किया. जय वर्धन आदित्य ~



अपने (शायरी)


किसी बेगाने को अपना बनाने का सोचा था,
अब तो अपने मुझे भुलाने लगे हैं,
मुस्कराने की कोशिश करता हूँ लेकिन,
अब तो आँखों में आँसू आने लगे हैं.

- जय वर्धन आदित्य