मुझमें पंख लगने
दो,
इन हरे घावों को
भरने दो,
जिस बात की चाह
थी मुझे,
इस आसमान को छूने
की,
अब मुझे उसे छूने
दो,
मुझमें पंख लगने
दो,
बचपन में जिस
ख्वाहिश के पौधे को,
औरों ने पाँव तले
कुचल दिया,
उन ख्वाहिशों में
अंकुर होने दो,
मुझमें पंख लगने
दो,
जिन आँखों में
कभी आंसू ही छलकते थे,
उन आँखों में
ख़ुशी की चमक दमकने दो,
जो होठ कभी
रोआंसे होकर सूखे थे,
उन होठों से अब
तो मुस्कान बिखरने दो,
मुझे अब हंसने
दो,
मुझमें पंख लगने
दो,
बचपन की हिरासत
से,
नवयौवन की आज़ादी
मुझे जीने दो,
मुझे टहलने दो,
मुझे उछलने दो,
मुझे चीखने दो और
चिल्लाने दो,
ज़िन्दगी ने दस्तक
दी है,
अब तो जीने दो,
मुझमें पंख लगने
दो,
मन में सुगबुगाहट
है,
हद के पार तक
झाँकने की,
कुछ खुद से समझने
और जानने की,
अब तो मुझे
दुनिया देखने दो,
मुझमें पंख लगने
दो,
अब चलना कौन
चाहता है,
अब दौड़ना कौन
चाहता है,
मुझे तो अब उड़ना
है, मुझे उड़ने दो,
मुझमें पंख लगने
दो.
- जय वर्धन आदित्य
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